जानिए पितृपक्ष के पांच सबसे बड़े दान के बारे में........

           


          दान या परोपकार एक ऐसा कर्म है जिसका महत्व सभी धर्मों में समान रूप से स्वीकार किया गया है। हिंदू धर्म में तो दान को सबसे बड़ा पुण्य कर्म माना गया है। जरूरतमंद को दान देने से उसका शुभ आशीर्वाद तो प्राप्त होता ही हैए ऐसा करने से कुंडली के समस्त ग्रह दोष भी शांत होते हैं। वैदिक ज्योतिष में ग्रह पीड़ा से मुक्ति के लिए दान के संबंध में विस्तार से बताया गया है।
            गौ दान- शास्त्रों में गौ दान को सबसे बड़ा दान बताया गया है। यदि पितृपक्ष में आप पितरों के नाम से गौ दान करते हैं तो इससे पितृ अत्यंत प्रसन्न् होते हैं। उनके अच्छे आशीर्वाद के फलस्वरूप परिवार में कभी धन.धान्य की कमी नहीं होती है। अधिकांश लोग अपने परिजनों की मृत्यु के बाद उनके नाम से गाय का दान करते हैं। इसके पीछे मान्यता यह है कि मृतात्मा जब स्वर्ग या नर्क की यात्रा कर रही होती है तो उसके रास्ते में पड़ने वाली वैतरणी नदी को गाय की पूंछ पकड़कर ही पार करना होता है। जो गौ दान करता है उस मृतात्मा को वैतरणी पार करवाने एक गाय ही आती है। गरुड़ पुराण के अनुसार गाय दान करने का सबसे उत्तम समय पितृपक्ष ही कहा गया है। पितृपक्ष में दो प्रकार से गाय का दान किया जा सकता है। एक तो अपने मृत परिजनों के नाम से और दूसरा स्वयं। यदि आप अपने पितरों की प्रसन्न्ता चाहते हैंए उनका शुभ आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो पितरों के नाम से गाय का दान पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए। यदि आप स्वयं गाय का दान करना चाहते हैं तो उसके लिए भी पितृपक्ष का समय सबसे अच्छा कहा गया है।
           अन्न् का दान- दूसरे प्रकार का दान अन्न् का दान कहा गया है। किसी जरूरतमंदए भूखेए गरीब व्यक्ति को अन्न् का दान देना या प्रसन्न्ता के साथ भरपेट भोजन करवाना द्वितीय कोटि का उत्तम दान कहा गया है। अन्न् का दान हमेशा ही उत्तम होता हैए लेकिन पितृपक्ष में पितरों के नाम से किसी को भोजन करवाना या अन्न् भेंट करना पितरों की प्रसन्न्ता का निमित्त बनता है।
            वस्त्र का दान- पितरों के नाम से वस्त्र का दान करना शुभ होता है। जरूरतमंदए गरीब बच्चों को नए वस्त्र भेंट करना चाहिए। वस्त्र के साथ गर्म कपड़े भी दान किए जा सकते हैं। कंबलए चप्पलए छाते का दान भी उत्तम दान कहा गया है। ये सब दान पितरों के नाम से किए जाना चाहिए। वस्त्र दान में यह ध्यान रखें कि वस्त्र नए होंए फटे हुए ना होंए पहने हुए ना हों।
औषधि का दान- पितृपक्ष में जरूरतमंद रोगियों को औषधि का दान श्रेष्ठ माना गया है। किसी गरीब रोगी व्यक्ति का उपचार करवाना और उसे दवाई भेंट करने से पितृ प्रसन्न् होते हैं और अच्छे आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस दान से व्यक्ति के जीवन से संकटों का नाश हो जाता है और आर्थिक तरक्की की राह पर चल पड़ता है। इससे कुल में वृद्धि होती है।
         श्राद्धपक्ष में स्वर्ण का दान करने का निर्देश भी शास्त्र देते हैं। स्वर्ण के दान से धन संबंधी रूकावटें दूर होती हैं। लेकिन पात्र.कुपात्र का विचार करके ही दान दिया जाना चाहिए। यह दान किसी उचित वेदपाठी ब्राह्मण को दिया जाना चाहिए। स्वर्ण की जगह चांदी का दान भी दिया जा सकता है। इसके अलावा भूमि का दानए घी का दानए नमक का दानए फलों का दान जैसे अनेक प्रकार के दान का वर्णन शास्त्रों में मिलता है।